भर्तृहरि की गुफा उज्जैन – इतिहास, महत्व और यात्रा गाइड
भर्तृहरि गुफा (Bharthari Gufa), जिसे भरथरी गुफा के नाम से भी जाना जाता है। यह गुफा उज्जैन शहर में शिप्रा नदी के किनारे स्थित सुंदर स्थान में से एक है। यह गुफा धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यह गुफा और इसके आसपास का वातावरण बहुत अच्छा है। आप यहां पर अच्छा और शांतिपूर्ण समय बिता सकते हैं।
आज हम उज्जैन शहर की भरथरी गुफा (Bharthari Gufa) के बारे में जानेंगे, जो एक रहस्यमय और अनोखी गुफाओं में से एक है। भरथरी की गुफा या भर्तृहरि की गुफा प्राचीन समय से साधु संतों की तपस्या स्थल और ध्यान का केंद्र रहा है। गुफा का नाम प्रसिद्ध राजा भर्तृहरि के नाम पर पड़ा, जिन्होंने राजपाट छोड़कर यहीं तपस्या की थी।
भर्तृहरि की गुफा के दर्शन और यात्रा (Visit and see to Bhartrihari caves)
भर्तृहरि की गुफा (Bhartrihari ki gufa) या भरथरी की गुफा उज्जैन शहर में घूमने का एक मुख्य आकर्षण स्थल है। आप अपने उज्जैन में यात्रा के सफर में इस गुफा की भी यात्रा कर सकते हैं। इस गुफा में यात्रा करने का अनुभव बहुत अलग होगा। यह गुफा उज्जैन से करीब 5 किलोमीटर दूर है। आप सड़क मार्ग से आसानी से आ सकते हैं। यहां पर पार्किंग के लिए बहुत बड़ी जगह है, जहां पर आप अपनी गाड़ी कर ही कर सकते हैं। यहां पर ऑटो के द्वारा भी आप आ सकते हैं।
भर्तृहरि की गुफा (Bhartrihari ki gufa) पर ऊपर की तरफ और ऊपर से नीचे की ओर सीढ़ियों से नीचे आने के रास्ते में सीढ़ियों के दोनों तरफ ढेर सारी दुकाने हैं। यहां पर गाय का ताजा और गर्म दूध मिलता है, जो बहुत ही स्वादिष्ट रहता है और बहुत कम प्राइस में मिलता है। इसके अलावा यहां पर ढेर सारी खाने-पीने की सामग्री मिलती है। यहां पर गायों की सेवा करना चाहते हैं, तो आप चारा खरीद सकते हैं और गाय को खिला सकते हैं।
सीढ़ियों के नीचे उतरने पर, यहां पर ढेर सारी गाय देखने के लिए मिलती है, जो बहुत अच्छी नस्ल की है और बहुत ही सुंदर लगते हैं। गाये को देखने के बाद, आप आगे जाएंगे, तो बहुत सारे देवी देवताओं के दर्शन करने के लिए मिलते हैं। यहां पर शंकर जी का मंदिर बना है। शंकर भगवान जी का शिवलिंग यहां पर खुले आसमान के नीचे विराजमान है। यहां पर शंकर भगवान जी का शिवलिंग भूमिगत है।
शंकर भगवान जी के दर्शन करके आगे जाने पर, काल भैरव जी और विक्रम बेताल जी के दर्शन मिलते हैं। देवी देवताओं के दर्शन करके, आगे बढ़ने पर गुफाएं देखने के लिए मिलती है, जो इस जगह का मुख्य आकर्षण है। यहां पर दो गुफा है – एक गुफा भर्तृहरि जी की है और दूसरी गोपीचंद जी की है।
भर्तृहरि जी की गुफा बहुत सुंदर और अंडरग्राउंड है। यहां पर फोटो खींचना मना है और बैठना मना है। गुफा के ऊपरी सिरे पर महायोगी मत्स्येंद्रनाथ जी का मंदिर बना है। यहां पर महाकाली जी के दर्शन करने लगते हैं। गुफा में नीचे जाने का बहुत सकरा रास्ता है और सीढ़ियों के द्वारा नीचे पहुंचा जा सकता है।
गुफा में जाने के लिए कभी-कभी बहुत लंबी लाइन लगती है। गुफा के नीचे एक बार में बहुत कम लोग जा सकते हैं, क्योंकि यह अंडरग्राउंड है और यहां पर जाने पर सफोकेशन हो सकती है, इसलिए अगर किसी को सांस से संबंधित या घबराहट होती है, तो वह यहां पर न जाए, तो बेहतर होगा।
भर्तृहरि गुफा (Bharthari Gufa) में पहुंचकर, एक बहुत बड़ा हाल और छोटी-छोटी तीन गुफाएं देखी जा सकती है, जिनमें से एक गुफा में भर्तृहरि जी की साधना किया करते थे। उनके यहां पर मूर्ति विराजमान है और धुनि जलती रहती है। एक गुफा में सुरंग देखने के लिए मिलती है, जिसके बारे में कहा जाता है, कि भर्तृहरि जी इस सुरंग के माध्यम से अलग-अलग जगह में जाया करते थे।
इस सुरंग के बारे में कहा जाता है कि इस सुरंग के माध्यम से भर्तृहरि जी चारों धामों के दर्शन करते थे। इस सुरंग का रास्ता कहां-कहां जाता है वह किसी को भी नहीं पता। प्राचीन समय में भर्तृहरि जी अपनी योग साधना के द्वारा काशी, वृंदावन जैसी जगह में जाया करते थे। तीसरी गुफा में शिवलिंग विराजमान है। आप इस गुफा में दर्शन करने के बाद, ऊपर आ सकते हैं और गुफा नंबर 2 में जा सकते हैं।
गुफा नंबर दो गोपीचंद जी की गुफा है और यह गुफा भी बहुत सुंदर है। यह गुफा भी बहुत सकरी है और गुफा में खड़े होने की जगह भी नहीं है। गुफा की ऊंचाई ज्यादा नहीं है। गुफा में गोपीचंद जी साधना करते थे और गुफा के अंदर शिवलिंग विराजमान है। इस शिवलिंग को नीलकंठेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है। दोनों गुफाओं में लाइट की अच्छी व्यवस्था है। दोनों गुफाओं के दर्शन करने के बाद, आप मंदिर परिसर के अन्य मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं।
मंदिर परिसर में नवनाथ मंदिर बना है, जहां पर भगवान शिव जी के दर्शन किए जा सकते हैं। यहां पर ढेर सारी साधु संतों की समाधि देखने के लिए मिलती है। यहां पर श्री पीर बाबा नाथ जी की समाधि और श्री बृहस्पति नाथ महाराज की समाधि के दर्शन होते हैं। यहां पर प्राचीन छतरी भी बनी हुई है, जिसमें चरण पादुका रखी हुई है।
आप उनके भी दर्शन कर सकते हैं। मंदिर परिसर में आप कुछ समय बैठ सकते हैं और अच्छा अनुभव कर सकते हैं। इसके अलावा यहां पर शिप्रा नदी का सुंदर घाट बना है, जहां पर जाकर आप नहा सकते हैं और घाट के किनारे बैठ सकते हैं। इस जगह में आने का आपका अनुभव बहुत ही अलग रहेगा।
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भर्तृहरि कौन थे या भर्तृहरि का जीवन परिचय (Who was Bhartrihari)
चक्रवर्ती सम्राट भर्तृहरि की जीवनी : योगीराज भर्तृहरि के पिता उज्जैयनी नरेश महाराज गंधर्वसेन थे। महाराजा गंधर्व सेन की चार संताने थी – भर्तृहरि, विक्रमादित्य, सुभटवीर्य और मैनावती। मैनावती गोंड़ बंगाल के शासक राजा माणिकचंद की रानी और योगीराज गोपीचंद की माता थी। राजा भर्तृहरि विक्रमादित्य के बड़े भाई थे।
राजा भरथरी पराक्रमी, सामर्थ्यवान, धैर्यवान, ज्ञान, नीति, विवेक, साम, दाम, दंड, भेद से परिपूर्ण न्याय प्रिय चक्रवर्ती राजा थे। 108 राजा और अधिराजा उनके चरणदेश में नतमस्तक थे। त्रिलोक सुंदरी रानी पिंगला उनकी अतिप्रिया पत्नी थी। नित्य प्रति महाराज भर्तृहरि की आसक्ति रानी पिंगला में बढ़ती ही गई। याैवन के वसंत का विहार होता ही रहा।
राजा भरथरी को पता था, कि यह सब अच्छा नहीं है। यह सब चीजें नाशवान है और एक दिन यह नाश हो जाएगा। यह दुखालय है। इसके समस्त पदार्थ मोह बंधन में जकड़ने वाले हैं। निसंदेह संसार और उसके पदार्थों के परे भी किसी की सत्ता है, जो शाश्वत शांति और परम आनंद की विधि है और यही जीव का परम लक्ष्य है। राजा भरथरी के प्रसिद्ध रचनाएँ “नीति शतक”, “वैराग्य शतक” और “श्रृंगार शतक” – आज भी संस्कृत साहित्य में अमूल्य मानी जाती हैं।
भर्तृहरि ने किस ग्रंथ की रचना की है – Bhartrihari Famous Books
भर्तृहरि जी के प्रसिद्ध ग्रंथ इस प्रकार है – १) सुभाषितात्रिशती (नीति शतक, श्रृंगार शतक, वैराग्य शतक,)
२) वाक्यपदीयम (तीन कांड)
३) वाक्यपदीय टीका (1 और 2 कांड)
४) महाभाष्यदीपिका (महाभाष्य टीका)
५) वेदांतसूत्रवृत्ति
६) शब्दधातुसमीक्षा
यह योगीराज भर्तृहरिनाथ प्रमुख ग्रंथ थे।
महाराजा भर्तृहरि और गुरु गोरक्षनाथ जी की भेंट
2500 वर्ष पूर्व सम्राट भर्तृहरि आखेट करने तोरणमाल पर्वत श्रृंखलाओं के घने जंगल में गए। वहां उन्होंने भागते हुए हिरण का आखेट किया। योग संयोगवंश श्री गुरु गोरक्षनाथ जी उसी वन में तपस्या में लीन थे। वह घायल हिरण भागता हुआ तपस्या में लीन गुरु गोरक्षनाथ जी के समीप ही गिर गया और वहीं उसके प्राण पखेरू उड़ गए।
राजा भर्तृहरि आखेट का पीछा करते-करते वही पहुंचे। सामने देखा तो एक महा तेजस्वी योगी समाधि में लीन बैठे हुए हैं और उनके चरणों के समीप हिरण भी मृत पड़ा हुआ है। महाराजा भर्तृहरि ने उन्हें प्रणाम किया और अपना आखेट मांगने लगे। श्री गोरक्षनाथ जी ने उनकी ओर देखा और बोला राजा और योगी में कौन बड़ा है।
इस पर भर्तृहरि मौन हो गए। तब गुरु गोरक्षनाथ जी ने स्पष्ट किया। राजा प्राणी को केवल मार सकता है। किंतु योगी मार भी सकता है और जीवित भी कर सकता है। राजा अपराधबोध से ग्रसित होकर संकोच से बोले – हे नाथ यदि आप इस हिरण को जीवित कर दें। तो मैं अपना संपूर्ण राजपाट छोड़कर आपका शिष्य हो जाऊंगा।
राजा भर्तृहरि की प्रार्थना पर गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपनी विभूति को मृत संजीवनी मंत्र से अभिमंत्रित कर हिरण पर छिड़क दी। उनके आशीर्वाद और योग शक्ति के प्रभाव से हिरण जीवित हो उठा। राजा भर्तृहरि आश्चर्यचकित होते हुए बहुत प्रभावित हो गए और करबद्ध प्रार्थना करने लगे हैं। हे महासिद्ध, हे नाथ मैं आपकी शरण में हूं। आप मुझे अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें।
श्री गोरक्षनाथ जी जानते थे, कि राजा भर्तृहरि महारानी पिंगला से अति प्रेम के कारण ईश्वर भक्ति नहीं कर सकते। गुरु गोरक्षनाथ जी ने कहा राजन अभी उचित समय नहीं आया। भविष्य में देखेंगे। योग मार्ग अत्यंत कठिन है।
जंगल में धुना लगाकर भभूति रमानी पड़ती है। 56 प्रकार के पकवानों का त्याग कर रूखी सूखी रोटी का टुकड़ा या जो भी मिले भिक्षा में प्राप्त खाना पड़ता है। आपके लिए यह असंभव है। राजन आप प्रस्थान करें और अपने राज्य कार्यों पर ध्यान दें। राजा भर्तृहरि और श्री गोरक्षनाथ जी का अत्यंत श्रद्धा भाव से प्रणाम कर वापस अपने महल लौट गए।
महारानी पिंगला का पतिव्रता धर्म
धीरे-धीरे समय बीतता गया। 1 दिन महाराजा भर्तृहरि वन में आखेट को निकले। वन में पहुंचकर उनके मन में विचार आया कि, क्यों ना महारानी पिंगला का पतिव्रता धर्म की परीक्षा ली जाए। यह विचार कर उन्होंने एक हिरण का आखेट किया। उसके रक्त अपने राजसी वस्त्रों में रंग कर अपने विश्वस्त सैनिकों के हाथों राज महल में महारानी पिंगला को इस संदेश के साथ भिजवाया, कि महाराजा भर्तृहरि जी शेर ने मार कर खा लिया है।
पतिव्रता महारानी पिंगला यह संदेश सुनते ही परलोक सिधार गई। जब महाराजा भरथरी ने वापस राजमहल आकर अपनी प्राण प्रिय पत्नी को मृत देखा। तो वह अत्यंत दुखी हो गए और श्मशान भूमि में जाकर चिता के सम्मुख बैठकर हाय पिंगला, हाय पिंगला पुकारने लगे। उनकी करुण पुकार और हृदय विदारक रुदन श्मशान में समस्त दिशाओं में गूंजने लगा।
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भर्तृहरि जी का वैराग्य उदय
महायोगी गोरक्षनाथ जी ध्यान अवस्था में अवंतिका नगरी के चक्रवर्ती सम्राट भरथरी जी के इस घटना से अवगत हो चुके थे। वह जान गए थे, कि अब राजा भर्तृहरि का वैराग्य लेने का उचित समय आ गया है। इसलिए महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने अपने तपोबल से अवंतिका नगरी की उसी श्मशान भूमि में जहां भर्तृहरि करुण विलाप करते हुए – हाय पिंगला, हाय पिंगला कर रहे थे।
एक मिट्टी की मटकी लेकर साधारण व्यक्ति के रूप में प्रकट हुए और वही भर्तृहरि के सामने जोर से मटकी भूमि पर गिरा कर तोड़ दी और हाय मटकी हाय मटकी कह कर रोने लगे। उनका रोना सुनकर भर्तृहरि जी आश्चर्यचकित उनके पास पहुंचे और उनका सांत्वना देते हुए समझाने लगे, कि तुम क्यों इस मिटटी की मटकी के लिए शोक कर रहे हो। मैं ऐसी सैकड़ों मटकी तुम्हें दे सकता हूं।
श्रीनाथजी ने उत्तर दिया, कि मेरी टूटी मटकी जैसी मटकी आप कदापि नहीं दे सकते और महाराज आप भी तो माया मोह के जंजाल के लिए शोक कर रहे हैं। अगर आप चाहे, तो मैं आपको पिंगला जैसी सैकड़ों पिंगला दे सकता हूं। यह कहकर गोरक्षनाथ जी ने अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए।
उज्जैनी नरेश भर्तृहरि जी आश्चर्यचकित हो, उन्हें देखते रह गए और फिर विवेकपूर्ण विचार कर बोले – महाराज यदि आपने ऐसा कर दिया, तो मैं आपके चरणों का दास बन जाऊंगा। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी ने योग माया कामनी मंत्र से अभिमंत्रित कर अपनी झोली से भभूत निकालकर पिंगला की चिता भस्म के ऊपर फूंक मारी। देखते ही देखते अनेक पिंगला श्मशान में प्रकट हो गई।
सम्राट भर्तृहरि अत्यंत विस्मित भाव से असंभव को संभव होता हुआ, यह चमत्कार देखते ही रह गए। उनकी आंखे चकित हो गई। वह एक अनोखी अनुभूति को प्राप्त कर गए। राजा भर्तृहरि ने चिंतन किया कि जिस योग विद्या से अनेक पिंगला प्रकट हो सकती है। उसे ही ग्रहण करना श्रेयस्कर है।
अतः थोड़े समय पश्चात जब उनका विवेक जागृत हुआ। तो उनके सम्मुख सत्य और असत्य, सुख-दुख, मोह माया, राज पाठ इत्यादि का भेद खुलने लगा। उनका सारा भ्रम टूटने लगा। उन्हें सारा संसार नश्वर लगने लगा और वह वहीं महायोगी गुरु गोरक्षनाथ जी के चरणों में गिर पड़े और उनके दास बन गए। गुरु गोरक्षनाथ जी ने श्मशान भूमि में ही योग और वैराग्य का उपदेश दिया और राजा भरथरी ने तपस्या में लीन हो गए।
भर्तृहरि गुफा का इतिहास (Bharthari Gufa History)
- गुफा का निर्माण लगभग 11वीं–12वीं शताब्दी का माना जाता है।
- यहाँ भर्तृहरि ने वर्षों तक ध्यान और साधना की थी।
- गुफा के आसपास प्राचीन संरचनाएँ, मूर्तियाँ और धार्मिक स्थल भी मौजूद हैं।
- समय-समय पर यहाँ साधु-संतों का प्रवास होता रहा है, जिससे यह स्थान आध्यात्मिक शक्ति का केंद्र बना रहा।
भर्तृहरि गुफा का धार्मिक महत्व
- वैराग्य और तपस्या का प्रतीक – यह गुफा त्याग और आत्मज्ञान की मिसाल है।
- आध्यात्मिक साधना स्थल – आज भी कई साधु यहाँ ध्यान और तपस्या करते हैं।
- श्रद्धालुओं के लिए प्रेरणा – यहाँ आने वाले लोग वैराग्य और संयम का संदेश पाते हैं।
- साहित्य से जुड़ाव – भर्तृहरि की रचनाएँ इस स्थान को और भी पवित्र बनाती हैं।
भर्तृहरि की गुफा में क्या देखें?
- मुख्य गुफा – पत्थरों से बनी यह गुफा साधना के लिए उपयुक्त वातावरण देती है।
- भर्तृहरि की प्रतिमा – गुफा के भीतर संत भर्तृहरि की मूर्ति स्थापित है।
- धार्मिक अनुष्ठान – यहाँ साधु-संत पूजा-पाठ और भजन-कीर्तन करते रहते हैं।
- क्षिप्रा नदी का दृश्य – गुफा से क्षिप्रा नदी का मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।
- गुफा के आसपास मंदिर – यहाँ छोटे-छोटे मंदिर और आश्रम भी स्थित हैं।
भर्तृहरि गुफा दर्शन का समय (Bharthari Gufa Darshan Timings)
- सुबह: 6:00 बजे से
- शाम: 8:00 बजे तक
त्योहारों और विशेष अवसरों पर समय बढ़ भी सकता है।
भर्तृहरि गुफा तक कैसे पहुँचें (How to reach Bhartrihari Gufa)
भर्तृहरि की गुफा मुख्य उज्जैन शहर से करीब 5 किलोमीटर दूर है। यहां पर आप सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। यहां पर आप अपनी बाइक या कार से आ सकते हैं। यहां पर आप ऑटो के द्वारा भी आ सकते हैं। यहां पार्किंग के लिए बहुत बड़ा स्पेस है। पार्किंग का यहां पर कोई भी शुल्क नहीं लगता है। पार्किंग में आप अपनी गाड़ी खड़ी कर सकते हैं।
भर्तृहरि गुफा की गूगल मैप लोकेशन
भर्तृहरि गुफा घूमने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit in Bhartrihari Gufa)
- अक्टूबर से मार्च – ठंड का मौसम यहाँ घूमने और साधना का सर्वोत्तम समय है। ठंड के समय में मौसम बहुत ही सुहावना रहता है, जिससे घूमने में कोई भी दिक्कत नहीं रहती है। आप यहां पर जाकर आराम से घूम सकते हैं और इस जगह का आनंद उठा सकते हैं।
- नवरात्रि और सावन – धार्मिक महत्व और श्रद्धालुओं की भीड़ के कारण यह समय विशेष रहता है। नवरात्रि और सावन के दौरान यहां पर ढेर सारे भक्त दर्शन करने के लिए आते है।
- सुबह और शाम – गुफा का शांत वातावरण ध्यान और दर्शन के लिए उपयुक्त है।
भर्तृहरि गुफा के आसपास घूमने की जगहें (Places to visit near Bharthari Gufa Ujjain)
- रामघाट – क्षिप्रा नदी का प्रमुख घाट, मात्र 1 किमी दूरी पर।
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर – उज्जैन का सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थल।
- काल भैरव मंदिर – भैरव उपासना का अनोखा केंद्र।
- हरसिद्धि माता मंदिर – शक्तिपीठ और धार्मिक महत्व से जुड़ा।
- संदीपनी आश्रम – भगवान कृष्ण के शिक्षा स्थल के रूप में प्रसिद्ध।
- दुर्गादास जी की छतरी – उज्जैन का ऐतिहासिक स्थल।
FAQs – भर्तृहरि की गुफा (Bharthari Gufa)
Q1. भर्तृहरि की गुफा कहाँ स्थित है?
यह गुफा मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित है।
Q2. भर्तृहरि कौन थे?
भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे, जिन्होंने राजपाट छोड़कर वैराग्य अपना लिया और यहाँ तपस्या की।
Q3. गुफा का धार्मिक महत्व क्या है?
यह गुफा त्याग, साधना और वैराग्य का प्रतीक है, जहाँ आज भी साधु-संत ध्यान करते हैं।
Q4. भर्तृहरि की गुफा कैसे पहुँचे?
उज्जैन रेलवे स्टेशन से लगभग 3 किमी दूर यह गुफा टैक्सी या ऑटो से आसानी से पहुँची जा सकती है।
Q5. घूमने का सबसे अच्छा समय कौन-सा है?
अक्टूबर से मार्च के बीच का समय यहाँ आने के लिए सबसे उपयुक्त है।
निष्कर्ष
भर्तृहरि की गुफा उज्जैन का एक अनोखा और पवित्र स्थल है, जो इतिहास, धर्म और अध्यात्म का अद्वितीय संगम है। यहाँ आकर न केवल आप प्राचीन संतों की साधना को महसूस कर सकते हैं, बल्कि क्षिप्रा नदी के पवित्र तट की सुंदरता का भी आनंद ले सकते हैं। चाहे आप धार्मिक आस्था से जुड़ें या ऐतिहासिक खोज में हों, भर्तृहरि की गुफा आपको अवश्य आकर्षित करेगी।
